I am in September 2022, and the text below is something which I wrote in 2008. I was young and was in pain at that time.
मेरा तकिया
मेरे तकिए ने कायी रात सुलाया है मुझे,
मेरे आंसुओं को ख़ुद में समेत कर दिल बहलाया है मेरा
वो मंज़िल जो हर लम्हा बस इतनी पास थी
की हर कदम में लगा बस एक कदम की ही तो दूरी है
और हर साँस के साथ ज़िंदगी गुजरती गयी
फिर भी कि एहसास है की अभी भूत कुछ बाक़ी है
कितने ख़्वाबों को अब तक क़त्ल होते देखा है
फिर भी हर एक नए खाब से कितनी उम्मीदें हैं
मेरे तकिए ने कई रात सुलाया है मुझे
तकिए की गोद में सर रख कर
रोते रोते सोने में जो सुकून है
उसके कुछ ज़र्रे तो सभ तक सिर में रहते हैं
बात भी वही रहती है, बस बेचैनी नहीं रहती
कियों बोलूँ में सब कुछ किसी को भी
'कोई भी मेरे तकिए जैसा नहीं है
कभी इसने कुछ नहीं पूछा मुझसे
फिर भी इतना अपना है की सब कुछ बता पाती हूँ
सब से बड़ी बात है की जितना चाहे में रो पाती हूँ,,,
मुझसे चुपने को भी नहीं कहता !!